सत्याग्रह फिल्म का प्लॉट अरविंद केजरीवाल और अन्ना हजारे की जिंदगी से प्रेरित है। पूरी फिल्म में आपको यही लगेगा कि आप अरविंद एण्ड अन्ना टीम को देख रहे हैं। जिन लोगों ने अन्ना और आम आदमी आंदोलन देखा है या उसमें भाग लिया है वे लोग बखूबी इस बात को समझ सकते हैं। प्रकाश झा ने सिर्फ और सिर्फ अन्ना आंदोलन को दिखाया है। जिसमें कल्पना और नाटकीयता का तड़का लगाने के लिए कुछ बदलाव किए गए हैं। करीना कपूर ने एक टीवी जर्नलिस्ट का किरदार निभाया है जो आंदोलन कवर करते हुए बिजनेस मेन से आंदोलनकारी बने अजय देवगन के प्यार में पड़ जाती है। और एक प्रतिष्ठित टीवी चैनल की गाड़ी से वह अजय देवगन के साथ घूमती नजर आई हैं। यह बात कुछ हजम नहीं हो पाई।
यदि बात करें अभिनय की तो अमिताभ बच्चन हमेशा की तरह बेमिसाल हैं। अजय देवगन काफी थके हुए और निराश से दिखाई पड़ते हैं। उनके चेहरे से ताजगी नदारद है। ढलती उम्र के निशान उनके चेहरे पर साफ देखे जा सकते हैं। अर्जुन रामपाल ने युवा नेता के रूप में किरदार में जान डाल दी है। मनोज बाजपेई इस तरह के रोल के लिए टाइप्ड हो चुके हैं। उन्होंने काफी रूटीन सा काम किया है। ऐसा लगता है उन्हें काफी जल्दी थी कहीं जाने की। करीना के हिस्से में कुछ खास था ही नहीं करने के लिए। वह सिर्फ शो पीस बन कर रह गई। अमृता राव ने शांत रहकर भी अपनी मौजूदगी का अहसास कराया है। वह छाप छोड़ने में सफल रही हैं। कुल मिलाकर अभिनय के स्तर पर फिल्म अच्छी है लेकिन प्लॉट में कुछ भी नयापन नहीं हैं। संगीत भी काफी औसत दर्जे का है।
इस बार प्रकाश झा चूक गए। यह फिल्म दिल्ली के चुनावों को ध्यान में रखते हुए अरविंद केजरीवाल को तोहफा है प्रकाश झा का। मेरी तरह से इस फिल्म को 5 में से 2.5। https://www.youtube.com/watch?v=1KXwGcZI13k
यदि बात करें अभिनय की तो अमिताभ बच्चन हमेशा की तरह बेमिसाल हैं। अजय देवगन काफी थके हुए और निराश से दिखाई पड़ते हैं। उनके चेहरे से ताजगी नदारद है। ढलती उम्र के निशान उनके चेहरे पर साफ देखे जा सकते हैं। अर्जुन रामपाल ने युवा नेता के रूप में किरदार में जान डाल दी है। मनोज बाजपेई इस तरह के रोल के लिए टाइप्ड हो चुके हैं। उन्होंने काफी रूटीन सा काम किया है। ऐसा लगता है उन्हें काफी जल्दी थी कहीं जाने की। करीना के हिस्से में कुछ खास था ही नहीं करने के लिए। वह सिर्फ शो पीस बन कर रह गई। अमृता राव ने शांत रहकर भी अपनी मौजूदगी का अहसास कराया है। वह छाप छोड़ने में सफल रही हैं। कुल मिलाकर अभिनय के स्तर पर फिल्म अच्छी है लेकिन प्लॉट में कुछ भी नयापन नहीं हैं। संगीत भी काफी औसत दर्जे का है।
इस बार प्रकाश झा चूक गए। यह फिल्म दिल्ली के चुनावों को ध्यान में रखते हुए अरविंद केजरीवाल को तोहफा है प्रकाश झा का। मेरी तरह से इस फिल्म को 5 में से 2.5। https://www.youtube.com/watch?v=1KXwGcZI13k