समीक्षक: अजय शर्मा
‘गैंग्स ऑफ वासेपुर-2’ खून-खराबे से भरे उसी सेट पर ले जाती है जहां अनुराग कश्यप हमें कुछ ही हफ्तों पहले ले गए थे। यह फिल्म वहीं से आगे बढ़ती है जहां सरदार खान दम तोड़ता है। पूरी फिल्म में पुश्तैनी झगड़े में बदला लेने के लिए खून खराबा के अलावा कुछ भी नहीं है। ऐसा ही कुछ 80 और 90 के दशक की फिल्मों में दिखाया जाता था। पहले फिल्मकार मुंबई के प्लाट पर मूवीज बनाया करते थे। कुछ मूवीज में सिर्फ मुबई के अंडरवर्ल्ड और माफियाओं की जिंदगी को दिखाया गया। रामगोपाल वर्मा ने सत्या और कंपनी जैसी फिल्मों से मुंबई माफिया को जिस ढंग से दिखाया उसके बाद वहां कुछ नया बचा नहीं दिखाने के लिए। अनुराग कश्यप ने बड़ी चालाकी के साथ बिहार की पृष्ठभूमि को चुना। वहां के कोल और स्टील माफिया पर अभी तक चुनिंदा ही भोजपुरी फिल्में बनी हैं। मुंबई माफिया बेस्ड फिल्मों से बोर हो चुके दर्शकों के लिए अनुराग ने बड़े ही सही ढंग से नये कलेवर के साथ बिहार के माफिया को टारगेट किया। कोल माफिया को उन्होंने अपने ही स्टाइल में पेश किया है। सत्या और कंपनी के बाद पहली कोई फिल्म आयी है, जिसने दिखाया है कि माफिया और खूनी रंजिश केवल मुंबई में ही नहीं होती। जिसमें उन्हें सफलता मिली और दर्शकों ने मूवी को हाथों हाथ लिया।
फिल्म का मजबूत पक्ष
इस फिल्म की खास बात यह है कि इसमें आदमी की उस भावना को दिखाया गया है जिसमें वह अपने आपको किसी फिल्मी हीरो से कम नहीं समझता है। सरदार खान (मनोज वाजपेई) के चरसी बेटे के रूप में फैजल (नवाजुद्दीन सिद्दिकी) जो अमिताभ बच्चन का फैन है और उसका असर उस पर साफ दिखाई पड़ता है। फैजल अमिताभ का फैन है तो उसका सौतेला भाई डिफनिट सलमान खान का फैन है।
यह फिल्म कास्ट की वजह से शानदार लगती है- फौलादी मां के किरदार में रिचा चड्ढा, तोतले परपेंडीकूलर के किरदार में आदित्य कुमार, जिंदादिल मोहसीना के किरदार में हुमा कुरैशी। फिल्म के सह लेखक जीशान कादरी खतरनाक डिफनिट के रोल में खूब जमते हैं, वहीं नवाजुद्दीन सिद्दिकी बेखौफ फैजल के रूप में पर्दे पर अपनी छाप छोड़ते हैं। रामाधीर सिंह के किरदार को तिग्मांशु धूलिया ने बखूबी पर्दे पर उतारा है। गैंग्स ऑफ वासेपुर-2 का म्यूजिक बहुत ही शानदार है जो इसका सबसे मजबूत पक्ष है। फिल्म का संगीत लगभग हर दृश्य में साथ चलता है। गानों में अंग्रेजी शब्दों पर बिहारी जामा सुनने में दिल को छूते हैं और बार बार सुनने के लिए मजबूर करते हैं। छी छा लेदर, काला रे जैसे गीत दूसरी दुनिया में ले जाते हैं।
फिल्म का कमजोर पक्ष
‘गैंग्स ऑफ वासेपुर-2’ टिपिकल मारधाड़ की कहानी से आगे नहीं बढ़ पाती। पहली कमी है इसका प्लॉट। फिल्म में कभी न खत्म होने वाले मर्डर्स जो कहीं भी कहानी से जुड़े हुए नहीं लगते, आपको पसंद नहीं आएंगे। आप सोचने पर मजबूर हो जाएगे कि आखिर इस सबका अंत कहां और कैसे होगा। पिछली फिल्म से अलग कहानी साबित करने में कुछ ज्यादा ही वक्त लगा। इस सिक्वल फिल्म की शुरुआत होती है बंदूक की गोलियों के साथ। फिल्म के किरदार सिर्फ भटकते हुए नजर आते हैं और इसी वजह से ये थोड़ी खोखली भी लगती है।
‘गैंग्स ऑफ वासेपुर-2’ का चेस सिक्वेंसेस अहम हिस्सा है पर उनका कुछ ज्यादा ही इस्तेमाल किया गया है। ऐसा लगता है कि अनुराग कश्यप अपनी फिल्म ब्लैक फ्राइडे के चेस सिक्वेंसेस से बाहर नहीं निकल पाए हैं। जिसे वह यहां दोहराते नजर आए हैं। ऐसा अक्सर होता है।
फिल्म की रेटिंग
मैं अनुराग कश्यप की इस फिल्म को 5 में से 3 स्टार दूंगा। जिसे सिनेमा थियेटर में एक बार देखा जा सकता है। फिल्म थोड़ी सी लम्बी है लेकिन इसकी स्टार कास्ट की वजह से बोर नहीं करती है। ये फिल्म अपने अनूठे म्यूजिक, बेहतरीन कलाकारों और अभिनय के लिए हमेशा याद रखी जाएगी।
‘गैंग्स ऑफ वासेपुर-2’ खून-खराबे से भरे उसी सेट पर ले जाती है जहां अनुराग कश्यप हमें कुछ ही हफ्तों पहले ले गए थे। यह फिल्म वहीं से आगे बढ़ती है जहां सरदार खान दम तोड़ता है। पूरी फिल्म में पुश्तैनी झगड़े में बदला लेने के लिए खून खराबा के अलावा कुछ भी नहीं है। ऐसा ही कुछ 80 और 90 के दशक की फिल्मों में दिखाया जाता था। पहले फिल्मकार मुंबई के प्लाट पर मूवीज बनाया करते थे। कुछ मूवीज में सिर्फ मुबई के अंडरवर्ल्ड और माफियाओं की जिंदगी को दिखाया गया। रामगोपाल वर्मा ने सत्या और कंपनी जैसी फिल्मों से मुंबई माफिया को जिस ढंग से दिखाया उसके बाद वहां कुछ नया बचा नहीं दिखाने के लिए। अनुराग कश्यप ने बड़ी चालाकी के साथ बिहार की पृष्ठभूमि को चुना। वहां के कोल और स्टील माफिया पर अभी तक चुनिंदा ही भोजपुरी फिल्में बनी हैं। मुंबई माफिया बेस्ड फिल्मों से बोर हो चुके दर्शकों के लिए अनुराग ने बड़े ही सही ढंग से नये कलेवर के साथ बिहार के माफिया को टारगेट किया। कोल माफिया को उन्होंने अपने ही स्टाइल में पेश किया है। सत्या और कंपनी के बाद पहली कोई फिल्म आयी है, जिसने दिखाया है कि माफिया और खूनी रंजिश केवल मुंबई में ही नहीं होती। जिसमें उन्हें सफलता मिली और दर्शकों ने मूवी को हाथों हाथ लिया।
फिल्म का मजबूत पक्ष
इस फिल्म की खास बात यह है कि इसमें आदमी की उस भावना को दिखाया गया है जिसमें वह अपने आपको किसी फिल्मी हीरो से कम नहीं समझता है। सरदार खान (मनोज वाजपेई) के चरसी बेटे के रूप में फैजल (नवाजुद्दीन सिद्दिकी) जो अमिताभ बच्चन का फैन है और उसका असर उस पर साफ दिखाई पड़ता है। फैजल अमिताभ का फैन है तो उसका सौतेला भाई डिफनिट सलमान खान का फैन है।
यह फिल्म कास्ट की वजह से शानदार लगती है- फौलादी मां के किरदार में रिचा चड्ढा, तोतले परपेंडीकूलर के किरदार में आदित्य कुमार, जिंदादिल मोहसीना के किरदार में हुमा कुरैशी। फिल्म के सह लेखक जीशान कादरी खतरनाक डिफनिट के रोल में खूब जमते हैं, वहीं नवाजुद्दीन सिद्दिकी बेखौफ फैजल के रूप में पर्दे पर अपनी छाप छोड़ते हैं। रामाधीर सिंह के किरदार को तिग्मांशु धूलिया ने बखूबी पर्दे पर उतारा है। गैंग्स ऑफ वासेपुर-2 का म्यूजिक बहुत ही शानदार है जो इसका सबसे मजबूत पक्ष है। फिल्म का संगीत लगभग हर दृश्य में साथ चलता है। गानों में अंग्रेजी शब्दों पर बिहारी जामा सुनने में दिल को छूते हैं और बार बार सुनने के लिए मजबूर करते हैं। छी छा लेदर, काला रे जैसे गीत दूसरी दुनिया में ले जाते हैं।
फिल्म का कमजोर पक्ष
‘गैंग्स ऑफ वासेपुर-2’ टिपिकल मारधाड़ की कहानी से आगे नहीं बढ़ पाती। पहली कमी है इसका प्लॉट। फिल्म में कभी न खत्म होने वाले मर्डर्स जो कहीं भी कहानी से जुड़े हुए नहीं लगते, आपको पसंद नहीं आएंगे। आप सोचने पर मजबूर हो जाएगे कि आखिर इस सबका अंत कहां और कैसे होगा। पिछली फिल्म से अलग कहानी साबित करने में कुछ ज्यादा ही वक्त लगा। इस सिक्वल फिल्म की शुरुआत होती है बंदूक की गोलियों के साथ। फिल्म के किरदार सिर्फ भटकते हुए नजर आते हैं और इसी वजह से ये थोड़ी खोखली भी लगती है।
‘गैंग्स ऑफ वासेपुर-2’ का चेस सिक्वेंसेस अहम हिस्सा है पर उनका कुछ ज्यादा ही इस्तेमाल किया गया है। ऐसा लगता है कि अनुराग कश्यप अपनी फिल्म ब्लैक फ्राइडे के चेस सिक्वेंसेस से बाहर नहीं निकल पाए हैं। जिसे वह यहां दोहराते नजर आए हैं। ऐसा अक्सर होता है।
फिल्म की रेटिंग
मैं अनुराग कश्यप की इस फिल्म को 5 में से 3 स्टार दूंगा। जिसे सिनेमा थियेटर में एक बार देखा जा सकता है। फिल्म थोड़ी सी लम्बी है लेकिन इसकी स्टार कास्ट की वजह से बोर नहीं करती है। ये फिल्म अपने अनूठे म्यूजिक, बेहतरीन कलाकारों और अभिनय के लिए हमेशा याद रखी जाएगी।