सत्ता की अंधी चाह में सांप्रदायिकता को हवा ना दें राजनेता
मोहन भागवत से एक छात्र ने सभा में सार्वजनिक रूप से राम मंदिर निर्माण पर एक सवाल पूछ लिया कि क्या राम मंदिर के भव्य निर्माण से गरीब की थाली में रोटी आ जाएगी? इस प्रश्न ने भगवा ब्रिगेड को आक्रोशित कर दिया। मोहन भागवत ने जो जवाब दिया उससे ज्यादा महत्वपूर्ण यह है कि ऐसा प्रश्न इस देश के एक युवा ने भरी सभा के दौरान पूछा। यह अपने आप में एक गंभीर प्रश्न है। जो सोचने के लिए मजबूर करता है कि इस देश का युवा क्या सोचता है।
लेकिन इसके इतर इस प्रश्न के बाद विरोधियों को आलोचना का मौका मिला और टीवी चैनल को टीआरपी का मुद्दा। हिन्दुस्तान का एक राष्टीय न्यूज चैनल इस विषय पर प्राइम टाइम में एक बौद्धिक बहस प्रसारित कर रहा था। जो देखने में तो दिलचस्प लग रही थी। लेकिन जब उसका विश्लेषण किया तो समझ में आया, टीवी चैनल तो सांप्रदायिक ध्रुवीकरण की हवा बनाने की कोशिश कर रहा है। यह यूपी विधान सभा चुनाव 2017 से पहले की तैयारी है।
यदि यूपी में इस वक्त मौजूदा हालात पर गौर करें तो सपा के मुखिया मुलायम सिंह यादव ने सार्वजनिक रूप से दो ऐसे बयान दिए हैं। जिनकी यहां पर चर्चा करना आवश्यक है। सबसे पहले उन्होंने कहा कि उन्हें बाबरी और राम मंदिर हादसे में कार सेवकों पर गोली चलाने के आदेश का दुख है। लेकिन कानून की रक्षा के लिए मजबूर थे। उसके बाद उनका दूसरा बयान आता है कि दादरी कांड में अखलाक की निर्मम हत्या और उसके बाद सांप्रदायिक दंगे में बीजेपी के तीन लोगों के नाम हैं। जिसके उनके पास पुख्ता सबूत हैं। यदि प्रधानमंत्री कहेंगे तो मैं उनके नाम बता दूंगा। ये दो ऐसे बयान हैं जो वोटों के लिए सांप्रादायिक ध्रुवीकरण करने की कोशिश के रूप में देखे जा सकते हैं। ऐसे बयान असहिष्णुता को बढ़ावा देने का काम ही करेंगें।
वहीं यूपी की पूर्व मुख्यमंत्री मायावती यूपी में दलितों के साथ अन्याय का मुद्दा उठाते हुए मौजूदा सरकार को घेर रही हैं। मायावती दलित वोट बैंक के लिए लोगों में आपसी वैमनस्य को हवा देने का काम कर रही हैं।
मुझ से अक्सर लोग पूछते हैं कि मुनि जी क्या राजनेताओं या जनप्रतिनिधियांे को ऐसे बयान देने चाहिए। जिससे मनुष्यों में आपसी सदभाव का माहौल बिगड़ने की पूरी संभावना हो। मुझे बड़ा दुख होता है यह सोचकर कि सत्ता में बने रहने के लिए या सत्ता में आने के लिए ये लोग किस स्तर की राजनीति कर रहे हैं। राजनीति में अमर्यादित व्यवहार और आचरण स्वस्थ लोकतंत्र के लिए घातक बीमारी के समान है। राजनैतिक प्रतिस्पर्धा में किसी भी हद को लांघ जाना शोभनीय नहीं हैं।
मुझ से लोगों ने कहा कि यदि मुलायम सिंह यादव के पास दादरी कांड के दोषियो के नाम हैं तो वे कानूनी कार्रवाई क्यों नहीं करवाते हैं। वे उन दोषियों के नामों को क्यों पाल रहे हैं? सीधे-सीधे तौर पर समझा जा सकता है कि मुलायम देश के प्रधानमंत्री को ब्लैकमेल कर रहे हैं और यूपी की जनता के साथ-साथ पूरे देश को असहिष्णुता की तरफ धकेलना चाहते हैं।
मैं देश के जिम्मेदार राजनेताओं से अपील करता हूं कि वे सत्ता की खातिर ऐसे बयानों से बचें जो देश की छवि को वैश्विक रूप से धूमिल करें। रही बात उस छात्र की जिसने गरीब के लिए रोटी मिलने का प्रश्न उठाया है। धर्म और रोटी दोनों ही जीवन के लिए आवश्यक है। व्यक्ति चाहे किसी भी धर्म को मानने वाला हो उसका आदर होना चाहिए। धर्म आत्मा का पोषण है और रोटी यानि कि आहार शरीर का पोषण है। अत दोनों ही जीवन के लिए अति आवश्यक है।
टीवी चैनल ऐसे मुद्दों पर बुद्धिजीवियों को बैठाकर खुली बहस तो कराता है। लेकिन ये बहस सार्थक ना होकर किसी मनोरंजक टीवी प्रोग्राम की फूहड़ पटकथा से ज्यादा कुछ नहीं प्रतीत होती है। ये तथाकथित बुद्धिजीवी अपने-अपने अहं की तुष्टि को पूरा करते ज्यादा नजर आते हैं। दर्शक बाद में इन महानुभावों को गाॅसिप का विषय बना लेते हैं। इन बुद्धिजीवियों का जमीनीस्तर पर कोई आधार ना होने के कारण इन बहसों का जनमानस पर कोई प्रभाव नहीं पड़ता। तो ऐसी बौद्धिक बहस भी निरर्थक हैं।
मोहन भागवत से एक छात्र ने सभा में सार्वजनिक रूप से राम मंदिर निर्माण पर एक सवाल पूछ लिया कि क्या राम मंदिर के भव्य निर्माण से गरीब की थाली में रोटी आ जाएगी? इस प्रश्न ने भगवा ब्रिगेड को आक्रोशित कर दिया। मोहन भागवत ने जो जवाब दिया उससे ज्यादा महत्वपूर्ण यह है कि ऐसा प्रश्न इस देश के एक युवा ने भरी सभा के दौरान पूछा। यह अपने आप में एक गंभीर प्रश्न है। जो सोचने के लिए मजबूर करता है कि इस देश का युवा क्या सोचता है।
लेकिन इसके इतर इस प्रश्न के बाद विरोधियों को आलोचना का मौका मिला और टीवी चैनल को टीआरपी का मुद्दा। हिन्दुस्तान का एक राष्टीय न्यूज चैनल इस विषय पर प्राइम टाइम में एक बौद्धिक बहस प्रसारित कर रहा था। जो देखने में तो दिलचस्प लग रही थी। लेकिन जब उसका विश्लेषण किया तो समझ में आया, टीवी चैनल तो सांप्रदायिक ध्रुवीकरण की हवा बनाने की कोशिश कर रहा है। यह यूपी विधान सभा चुनाव 2017 से पहले की तैयारी है।
यदि यूपी में इस वक्त मौजूदा हालात पर गौर करें तो सपा के मुखिया मुलायम सिंह यादव ने सार्वजनिक रूप से दो ऐसे बयान दिए हैं। जिनकी यहां पर चर्चा करना आवश्यक है। सबसे पहले उन्होंने कहा कि उन्हें बाबरी और राम मंदिर हादसे में कार सेवकों पर गोली चलाने के आदेश का दुख है। लेकिन कानून की रक्षा के लिए मजबूर थे। उसके बाद उनका दूसरा बयान आता है कि दादरी कांड में अखलाक की निर्मम हत्या और उसके बाद सांप्रदायिक दंगे में बीजेपी के तीन लोगों के नाम हैं। जिसके उनके पास पुख्ता सबूत हैं। यदि प्रधानमंत्री कहेंगे तो मैं उनके नाम बता दूंगा। ये दो ऐसे बयान हैं जो वोटों के लिए सांप्रादायिक ध्रुवीकरण करने की कोशिश के रूप में देखे जा सकते हैं। ऐसे बयान असहिष्णुता को बढ़ावा देने का काम ही करेंगें।
वहीं यूपी की पूर्व मुख्यमंत्री मायावती यूपी में दलितों के साथ अन्याय का मुद्दा उठाते हुए मौजूदा सरकार को घेर रही हैं। मायावती दलित वोट बैंक के लिए लोगों में आपसी वैमनस्य को हवा देने का काम कर रही हैं।
मुझ से अक्सर लोग पूछते हैं कि मुनि जी क्या राजनेताओं या जनप्रतिनिधियांे को ऐसे बयान देने चाहिए। जिससे मनुष्यों में आपसी सदभाव का माहौल बिगड़ने की पूरी संभावना हो। मुझे बड़ा दुख होता है यह सोचकर कि सत्ता में बने रहने के लिए या सत्ता में आने के लिए ये लोग किस स्तर की राजनीति कर रहे हैं। राजनीति में अमर्यादित व्यवहार और आचरण स्वस्थ लोकतंत्र के लिए घातक बीमारी के समान है। राजनैतिक प्रतिस्पर्धा में किसी भी हद को लांघ जाना शोभनीय नहीं हैं।
मुझ से लोगों ने कहा कि यदि मुलायम सिंह यादव के पास दादरी कांड के दोषियो के नाम हैं तो वे कानूनी कार्रवाई क्यों नहीं करवाते हैं। वे उन दोषियों के नामों को क्यों पाल रहे हैं? सीधे-सीधे तौर पर समझा जा सकता है कि मुलायम देश के प्रधानमंत्री को ब्लैकमेल कर रहे हैं और यूपी की जनता के साथ-साथ पूरे देश को असहिष्णुता की तरफ धकेलना चाहते हैं।
मैं देश के जिम्मेदार राजनेताओं से अपील करता हूं कि वे सत्ता की खातिर ऐसे बयानों से बचें जो देश की छवि को वैश्विक रूप से धूमिल करें। रही बात उस छात्र की जिसने गरीब के लिए रोटी मिलने का प्रश्न उठाया है। धर्म और रोटी दोनों ही जीवन के लिए आवश्यक है। व्यक्ति चाहे किसी भी धर्म को मानने वाला हो उसका आदर होना चाहिए। धर्म आत्मा का पोषण है और रोटी यानि कि आहार शरीर का पोषण है। अत दोनों ही जीवन के लिए अति आवश्यक है।
टीवी चैनल ऐसे मुद्दों पर बुद्धिजीवियों को बैठाकर खुली बहस तो कराता है। लेकिन ये बहस सार्थक ना होकर किसी मनोरंजक टीवी प्रोग्राम की फूहड़ पटकथा से ज्यादा कुछ नहीं प्रतीत होती है। ये तथाकथित बुद्धिजीवी अपने-अपने अहं की तुष्टि को पूरा करते ज्यादा नजर आते हैं। दर्शक बाद में इन महानुभावों को गाॅसिप का विषय बना लेते हैं। इन बुद्धिजीवियों का जमीनीस्तर पर कोई आधार ना होने के कारण इन बहसों का जनमानस पर कोई प्रभाव नहीं पड़ता। तो ऐसी बौद्धिक बहस भी निरर्थक हैं।
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